सीएसआईआर-भारतीय विषविज्ञान अनुसंधान संस्थान, लखनऊ में आयोजित राष्ट्रीय वैज्ञानिक संगोष्ठी “पर्यावरण प्रदूषण: कारण एवं निवारण” का समापन समारोह दिनांक 21 अक्टूबर, 2016 को आयोजित हुआ।
समापन समारोह के मुख्य अतिथि पद्मश्री प्रोफेसर प्रमोद टण्ड्न, मुख्य कार्यकारी अधिकारी, बॉयोटेक पार्क, लखनऊ थे। मुख्य अतिथि ने इस अवसर पर कहा कि पर्यावरण को काफी क्षति हुई है। जल, वायु ही नहीं यहॉ तक कि आंतरिक्ष भी प्रदूषित हो रहा है। संस्थान के निदेशक प्रोफेसर आलोक धावन ने अपने संबोधन में कहा कि यह संगोष्ठीण सीएसआईआर-आईआईटीआर में किए जा रहे कार्य से मिलते-जुलते विषय पर आयोजित की गई है, जिससे पर्यावरण संरक्षण और प्रबंधन के निवारण हेतु प्रभावी नीति निर्धारण हेतु निष्कर्ष प्राप्त हों।
इस संगोष्ठीं के सफल आयोजन में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए आयोजकों को सम्मानित भी किया गया।
इस संगोष्ठीं के सफल आयोजन में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए आयोजकों को सम्मानित भी किया गया।
पर्यावरण के किसी भी तत्व में होने वाला अवांछनीय परिवर्तन, जिससे जीवजगत पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, प्रदूषण कहलाता है। पर्यावरण प्रदूषण में मानव कीविकास प्रक्रिया तथा आधुनिकता का महत्वपूर्ण योगदान है। यहाँ तक मानव की वे सामान्यगतिविधियाँ भी प्रदूषण कहलाती हैं, जिनसे नकारात्मक फल मिलते हैं। उदाहरण के लिएउद्योग द्वारा उत्पादित नाइट्रोजन आक्साइड प्रदूषक हैं। हालाँकि उसके तत्व प्रदूषकनहीं है। यह सूर्य की रोशनी की ऊर्जा है जो कि उसे धुएँ और कोहरे के मिश्रण में बदलदेती है।
प्रदूषण दो प्रकार का हो सकता है। स्थानीय तथा वैश्विक। अतीत में केवल स्थानीयप्रदूषण को समस्या माना जाता था। उदाहरण के लिए कोयले के जलाने से उत्पन्न धुऑं, अत्यधिक सघन होने पर प्रदूषक बन जाता है। जो कि स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।स्कूल कॉलेजों में एक नारा सिखाया जाता था कि प्रदूषण का समाधान उसे हल्का कर देनाहै। सिद्धान्त यह था कि विरल-कम-प्रदूषण से कोई हानि नहीं होगा। हाल के दिनों मेंहुयी शोधों से लगातार चेतना बढ़ रही है कि कुछ प्रकार का स्थानीय प्रदूषण, अब समस्तविश्व के लिए खतरा बन रहा है जैसे आणविक विस्फोटों से उत्पन्न होने वालीरेडियोधर्मिता। स्थानीय तथा वैश्विक प्रदूषणों की चेतना से पर्यावरण सुधार आन्दोलनप्रारम्भ हुये हैं। जिसके कि मनुष्य द्वारा की गयी गतिविधियों से, पर्यावरण कोदूषित होने से बचाया जा सके, उसे कम से कम किया जा सके।
जैसेसमुद्र के किनारे तथा झीलों में उगने वाली वनस्पति शैवाल आदि जो कि प्रदूषण का कारणहै, औद्योगिक कृषि, रिहायशी कॉलौनियों से निकलने वाले अपf’kष्ट पदार्थ से प्राप्तपोषण से पनपते हैं। भारी तत्व जैसे लैड और मरकरी का जियोकैमिकल चक्र में अपना स्थानहै। इनकी खुदाई होती है और इनकी उत्पादन प्रक्रिया कैसी है उस पर निर्भर करेगा किवे पर्यावरण में किस प्रकार सघनता से जाते हैं। जैसे इन तत्वों का पर्यावरण् मेंमानवीय निस्तारण प्रदूषण कहलाता है। वैसे ही प्रदूषण, देशज या ऐतिहासिक प्राकृतिकभूरासायनिक गतिविधि से भी पैदा हो सकता है।
वायुमण्डल में कार्बनडाईआक्साइड का होना भी प्रदूषण हो जाता है यदि वह धरती केपर्यावरण में अनुचित अन्तर पैदा करता है। 'ग्रीन हाउस'प्रभाव पैदा करने वाली गैसोंमें वृद्धि के कारण भू-मण्डल का तापमान निरन्तर बढ़ रहा है। जिससे हिमखण्डों केपिघलने की दर में वृद्धि होगी तथा समुद्री जलस्तर बढ़ने से तटवर्ती क्षेत्र, जलमग्नहो जायेंगे। हालाँकि इन शोधों को पश्चिमी देश विशेषकर अमेरिका स्वीकार नहीं कर रहाहै। प्रदूषण् के मायने अलग-अलग सन्दर्भों से निर्धारित होते हैं।
परम्परागत रूप से प्रदूषण में वायु, जल, रेडियोधर्मिता आदि आते हैं। यदि इनकावैश्विक स्तर पर विश्लेषण किया जाये तो इसमें ध्वनि, प्रकाश आदि के प्रदूषण भीसम्मिलित हो जाते हैं।
गम्भीर प्रदूषणउत्पन्न करने वाले मुख्य स्रोत हैं, रासायनिक उद्योग, तेल रिफायनरीज़, आणविक अपशिष्टस्थल, कूड़ा घर, प्लास्टिक उद्योग, कार उद्योग, पशुगृह, दाहगृह आदि। आणविक संस्थान, तेल टैंक, दुर्घटना होने पर बहुत गम्भीर प्रदूषण पैदा करते हैं। कुछ प्रमुख प्रदूषकक्लोरीनेटेड, हाइड्रोकार्बन्स, भारी तत्व लैड, कैडमियम, क्रोमियम, जिंक, आर्सेनिक, बैनजीन आदि भी प्रमुख प्रदूषक तत्व हैं
प्राकृतिक आपदाओं के पश्चात् प्रदूषण उत्पन्न हो जाता है। बड़े-बड़े समुद्रीतूफानों के पश्चात् जब लहरें वापिस लौटती हैं तो कचरे कूड़े, टूटी नाव-कारें, समुद्रतट सहित तेल कारखानों के अपशिष्ट म्यूनिसपैल्टी का कचरा आदि बहाकर ले जाती हैं।'सुनामी'के पश्चात् के अध्ययन ने बताया कि तटवर्ती मछलियों में, भारी तत्वों काप्रतिषत बहुत बढ़ गया था।
प्रदूषक विभिन्न प्रकार की बीमारियों को जन्म देते हैं। जैसे कैंसर, इलर्जी, अस्थमा, प्रतिरोधक बीमारियाँ आदि। जहाँ तक कि कुछ बीमारियों को उन्हें पैदा करनेवाले प्रदूषक का ही नाम दे दिया गया है। जैसे मरकरी यौगिक से उत्पन्न बीमारी को'मिनामटा'कहा जाता है।